Saturday, September 30, 2023

Sawan ka 3 somvar hai....

Har har mahadev 
Mahadev ki kripa sabhi bhakt pr ho~~ मैं जब ब्लॉग कैसे लिखा जाय और टेकनली सिस्टम क्या है, और इसे कैसे समझा जा सकता मैंने समझने की कोशिश की अपने असिस्टेंट से वो टेकनीली साऊंड हैं, सो उसने मेरा ब्लॉग बनाया और सेंपल के तौर पे ये दो लाईन लिखी और पब्लिश कर दिया। अब उद्धरण स्वरुप बच्चे ने दो लाईन अंग्रेज़ी में लिख दी, चलो भोलेनाथ पर ही दो लाईन सही। और इन्हीं की भक्ति में लीन मेरी नायिका, सावन का माह वो भी दो सावन इस बार पड़ रहे हैं, भक्तो की लम्बी परीक्षा पूरे दो माह भक्ति। भोलेनाथ भी भक्ति किसे किस भाव में देते हैं ये सार्व भौमिक सत्ता जानें। मैं यहां पर भोलेनाथ को उपरोक्त शब्दों से संबोधन कर रहा हूं। मेरी नायिका अपने बुआ सास के साथ रहती हैं। वो एक निजी प्रतिष्ठान में नौकरी करती हैं। रोज़ की तरह,८.३०, रात्रि को ड्यूटी ऑफ़ पौने नव बजे तक पैदल घर आ पहुंचती हैं, आज भी पहुंची, तभी गुड्डी सिद्धनाथ चलोगी... उसकी मोबाइल की घंटी घंघना या ओके बटन के बाद ये आवाज़ उसके मुंह बोले भईया की आई, उसने बिना विचार किए, बोल दिया हां, मैं तैयार हूं, तो मैं साढ़े नव तक तुम्हारे पास पहुंच रहा हूं, ठीक है, वह बोली। और बुआ जी को बताने लगीं वो दर्शन करने अपने मुंह बोले भईया के साथ मंदिर... बुआ जी का माथा ठनका, स्कूटी से, करीब १५..२०, किमी दूर स्थित है, यह मंदिर ...और शहर से बाहर पड़ता है, और लौटने में रात का सन्नाटा,.. वह भी पराए पुरुष के साथ.... उसकी विवाह का संबंध विच्छेद करीब २३,२४, वर्ष हो चुका हैं। लेकिन बुआ जी की रिश्तेदारी दोनों पक्षों से हैं, और लॉक डाउन में उसकी माली हैसियत ऐसी नहीं रही कि वो किराए के मकान में रह सकें। उन्हीं दिनों करोना से पीड़ित फुफा जी चल बसे। उसने भी उनके अन्तिम संस्कार में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। बुआ जी की तीनो विवाहित कन्याओं ने वक्त की नजाकत समझी और उसे ऑफर कर दिया, उसे अपने मां, के साथ रहने को। अंधा क्या चाहे देखने को आंखे । मेरी नायिका और बुआ जी एक दुसरे के पूरक बन गई। मेरी नायिका भी अपने जन्म से इसी मोहल्ले रह रहीं हैं। माता पिता का देहान्त होने के बाद, तीनों भाई~भौजाई इस क्षेत्र को छोड़कर, अपने बनाए स्व आवास में चले गए। उनकी परियक्ता बहन से नहीं पटी या वो जिम्मेदारी से मुक्त रहना चाहते थे। यहां पर जबरदस्त मानवीयता का ह्रास का प्रदर्शन, अब संवाद में किस ओर कमी रह गई। मेरी समझ से बाहर हैं। ऐसे मौके पर मुंह बोले भाई का उसे सम्बल, और अपने दुकान में रोजगार उपलब्ध करना क़रीब सात वर्षों तक वो उससे जुड़ी रहीं, एक उसके मिलने वाले ने बताया आज भी इनके नाम से एक फर्म चल रही हैं। आई.टी.आर. उसका जाता है। परन्तु इतने मधुर संबंध, उसका ज्यादा दिन रोजगार, उन भईया के यहां नहीं बन पड़ा । मेरी समझ की कटुता तो यहीं है, कि एक खूबसूरत नवजवान स्त्री का एक गैर पुरुष का एक ही रिस्ता समाज को समझ में आता है, " नर~मादा" का ?,। मुंह बोले भईया की पत्नी को कतई बर्दाश्त नहीं होगी इस टाइप की रिश्तेदारी। सो मामला उनके यहां से कट। और अभी तक कई निजी संस्थानों में कार्य करती चली। आ रही हैं। और उसके अकेले रहने पर, भईया का आना जाना लगा रहता हो। और जैसा कि मुझे अहसास है कि, भईया की वो माली हैसियत पहले जैसी न रही हो, कि उसकी आर्थिक मदद कर सकें। नहीं तो उसे कमरा खाली न करना पड़ता। और न उसके प्राइवेसी में खलल पड़ता। लेकिन उसका रहन सहन, पहनावा ओढ़वा साधन संपन्न महिला की सी हैं। हां तो मैं कह रहा था, अपने नायिका की कहानी... लेकिन मेरी नायिका का बीहेव अपने पुराने मैके वाले जैसे ही बने पड़े हैं। उसे नहीं लगता कि वो अपने ससुराल पक्ष की तरफ़ रह रहीं हैं। उसने झट से जुबान हिला दी... कि बना खा के फ्री हो जायेगी। और भोलेनाथ की भक्ति का लाभ ले लेगी । पर मानवीय मन बुआ जी का... कि वो पराए पुरुष के साथ..... वो भी पूरे सावन रोज रात्रि में दर्शन.... ये बात उन्हे कतई कबूल नहीं। और उस भईया को अपनी व्यवहारिक बुद्धि से सोचना चाहिए कि वो किनके यहां और किन परिस्थितियों में रह रही हैं?, मुझे ख़ुद यह बात अखर गई । पहले दिन ही बुआ जी ने अपनी भाव भंगिमा प्रदर्शित कर दी, ये भक्ति उन्हे कतई भी पसन्द नहीं है। मैने भी प्रश्न किया कि वो अपनी पत्नी को क्यों नहीं साथ लें जाते। वह बोली, वह अपने घर गृहस्थी में फंसी रहती हैं। और वह तुम्हारे साथ सुनसान इलाके में जोखिम लेने को तैयार, अगर कोई हादसा हो जाय तो... वो जवान और खूबसूरत स्त्री.... लेकिन उसकी भक्ति का दौर एक आध दिन ही चल पाया कि, बुआ जी सुबह के सत्संग से वापसी और दरवाजे के पास तक दौड़ता हुआ एक साढ़ ...भागता चला आया, और बुआ जी... संभलने की जगह गिर पड़ी और कूल्हे की हड्डी चटक गई। अब इलाज और ऑपरेशन का दौर, सेवाभाव के लिए पालिओ की सेटिंग सबेरे दस बजे तक, नायिका की बारी फिर लोकल ब्याही एक बेटी की बारी, फिर ड्यूटी ऑफ़ के बाद , नायिका की बारी, और हुआ बवाले जान, नाते रिस्तेदारो का आना जाना....। स्वागत सत्कार में उसकी छोटी कमाई का काफ़ी हिस्सा जाया होता जा रहा था। वह मूक~दर्शक बन चुकी थी। वो कैसे छुटकारा पाएं इस बवाले जान से। परेशान हैरान क्या करे। मुझे बताया। मैं बोला यह तुम्हारे लिए भोलेनाथ की असली भक्ति हैं। परीक्षा में पास हो कर दिखाओ। सेवा ही असली भक्ति हैं। तुमको भोलेनाथ ने भक्ति की सही परिभाषा गढ़ कर बताई है, न कि उस सुनसान मार्ग की यात्रा कर, बुत परस्ती। और उस व्यवहारिक बुद्धि से हीन व्यक्ति के साथ आडंबर रचने। खुशी ~खुशी सेवा करो, ये तो परमात्मा ने वास्तविक पूजा का अवसर प्रदान किया है। हल्लो तुम वास्तव में प्रभु की भक्त हों, भोलेनाथ ख़ुद साढ़ बन कर आए थे। और अपनी सेवा के लिए ख़ुद बुआ जी बन गए.... हल्लो... मनुष्य का सबसे बड़ा धर्म अनासक्त भाव से सेवा करना होता है। तुम इस परीक्षा में खरी उतरो। प्रभु के दिए अवसर को पहचानो.... वह कुछ देर तक शान्त रह कर मेरी बात सुनती रही, गुनती रही। और रही खर्चे की बात तो बुआ जी की बिटिया को स्पष्ट बता दो। की महमानों की आवभगत  में... धन की आमद पे ध्यान दे। मैं... मैं... यहीं बात तो कहना चाहती हूं। अब वह दुकान में ऊंघती रहती हैं उसे बुआ जी को रात में कई बार बाथरूम ले जाना पड़ता हैं। अब मुझे नहीं लगता है कि वो राजी मन से या बेराजी मन से.... लगीं हुईं हैं। और उसके पास रहने का कोई दूसरा विकल्प भी तो नहीं है, वो इस झंझावात से भाग जाए। लेकिन मैं फिर भी यह बात अथार्थ समझता हूं, कि भोलेनाथ उसपे प्रसन्न हैं । जरूर गत दो माह के आवागमन में कुछ भी हो सकता...... उसे तो भोलेनाथ ने असली भक्ति दी है। वह आने वाले समय में समझ जाएगी। मेरी गहरी आस्था है कि भोलेनाथ ने इस सेवा के द्वारा उसके साथ किसी हादसा से बचा लिया था। आज वह थोड़ी परेशान हैं और खुश भी कल सावन का आखिरी दिन और रक्षा ~बन्धन का त्यौहार, वह अपने चाची जी के घर जायेगी और प्रत्येक वर्ष की भांति, राखी अपने चचेरे भाइयों को बांधे गी। और दो रोज की सेवा से मुक्ति। बुआ जी की बेटियां आई हुईं हैं।

Sawan ka 3 somvar hai....

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